गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दसवां अध्याय
विभूति योग
पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम्। पावन करने वाले में पवन मैं हूं, शस्त्रधारियों में परशुराम मै हूं, मछलियों में मगरमच्छ मैं हूं, नदियों में गंगा मैं हूँ। सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन। हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि, अंत और मध्य मैं हूँ , विद्याओं में अध्याय विद्या मैं हूँ और विवाद करने वालों का विवाद मैं हूँ। अक्षरों में 'अकार' मैं हूं, समासों में द्वन्द्व मैं हूं, अविनाशी काल मैं हूँ और सर्वव्यापी धारण करने वाला भी मैं हूँ। मृत्यु: सर्वहराश्चाहमुद्भश्च भविष्यताम्। सबको हरने वाली मृत्यु मैं हूं, भविष्य में उत्पन्न होने वाले का उत्पत्ति कारण मैं हूँ और नारी-जाति के नामों में कीर्ति, लक्ष्मी, वाणी, स्मृति मेधा (बुद्धि), धृति (धैर्य) और क्षमा मैं हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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