गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 143

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
नवां अध्याय
राज विद्याराज गुह्य योग


ते तं भुक्‍त्‍वा सवर्गलोकं विशालं
श्रीणे पुण्‍ये मर्त्‍यलोकं विशन्ति।
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्‍ना
गतागतं कामकामा लभन्‍ते।।21।।

इस विशाल स्‍वर्गलोक को भोगकर वे पुण्‍य का क्षय हो जाने पर मृत्‍युलोक में वापस आते हैं। इस प्रकार तीन वेद के कर्म करने वाले फल की इच्‍छा रखने वाले जन्‍म-मरण के चक्‍कर काटा करते हैं।

अनन्‍याश्चिन्‍तयन्‍तो मां ये जना: पर्युपासते।
तेषां नित्‍याभियुक्‍तानां योगक्षेमं बहाम्‍यहम्।।22।।

जो लोग अनन्‍य भाव से मेरा चिंतन करते हुए मुझे भजते हैं, उन नित्‍य मुझमें ही रत रहने वालों के योग-क्षेम का भार मैं उठाता हूँ।

टिप्‍पणी- इस प्रकार योगी को पहचानने के तीन सुंदर लक्षण हैं- समत्‍व, कर्म-कौशल, अनन्‍य भक्ति। ये तीनों एक-दूसरे में ओत-प्रोत होने चाहिए। भक्ति के बिना समत्‍व नहीं मिलता, समत्‍व के बिना भक्ति नहीं मिलती और कर्म-कौशल के बिना भक्ति तथा समत्‍व का आभास मात्र होने का भय है। योग अर्थात अप्राप्‍त वस्‍तु को प्राप्‍त करना और क्षेम अर्थात प्राप्‍त वस्‍तु को संभालकर रखना।

येऽप्‍यन्‍यदेवता भक्‍ता यजन्‍ते श्रद्धयान्विता:।
तेऽपि मामेव कौन्‍तेय यजन्‍त्‍यविधिपूर्वकम्।।23।।

और, हे कौंतेय! जो श्रद्धापूर्वक दूसरे देवता को भजते हैं, वे भी भले ही विधिरहित भजें, मुझे ही भजते हैं।

टिप्‍पणी- विधिरहित अर्थात अज्ञानवश, मुझे एक निरंजन निराकार को न जानकर।

अहंहि सर्वयज्ञानां भोक्‍ता च प्रभुरेव च।
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्‍च्‍यवन्ति ते।।24।।

जो मैं ही सब यज्ञों को भोगने वाला स्‍वामी हूं, उसे वे सच्‍चे स्‍वरूप में नहीं पहचानते, इसलिए वे गिरते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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