गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
नवां अध्याय
राज विद्याराज गुह्य योग
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह:। इस जगत् का पिता मैं, माता मैं, धारण करने वाला मैं, पितामह मैं, जानने योग्य मैं, पवित्र ॐकार मैं, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी में ही हूँ। गति मैं, पोषक मैं, प्रभु मैं, साक्षी मैं, निवास मैं, आश्रय मैं, हितैषी मै, उत्पत्ति मैं, नाश मैं, स्थिति मैं, भंडार मैं और अव्यय बीज भी मैं हूँ।
धूप मैं देता हूं, वर्षा को मैं ही रोक रखता और बरसने देता हूँ। अमरता मैं हूं, मृत्यु मैं हूँ और हे अर्जुन! सत् तथा असत् भी मैं ही हूँ।
तीन वेद के कर्म करने वाले सोमरस पीकर निष्पाप बने हुए यज्ञ द्वारा मुझे पूजकर स्वर्ग माँगते हैं। वे पवित्र देवलोक पाकर स्वर्ग में दिव्य भोग भोगते हैं। टिप्पणी- सभी वैदिक क्रियाएं फल-प्राप्ति के लिए की जाती थीं और उनमें से कई क्रियाओं में सोमपान होता था, उसका यहाँ उल्लेख है। वे क्रियाएं क्या थीं, सोमरस क्या था, यह आज वास्तव में कोई नहीं कह सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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