गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 140

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
नवां अध्याय
राज विद्याराज गुह्य योग


न च मां तानि कर्माणि निबध्‍नन्ति धनंजय।
उदासीनवदासीनमसक्‍तं तेषु कर्मसु।।9।।

हे धनंजय! ये कर्म मुझे बंधन नहीं करते, क्‍योंकि मैं उनमें उदासीन के समान और आसक्तिरहित बर्तता हूँ।

मयाध्‍यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम्।
हेतुनानेन कौन्‍तेय जगद्विपरिवर्तते।।10।।

मेरे अधिकार के नीचे प्रकृति स्‍थावर और जंगम जगत को उत्‍पन्‍न करती है और इस हेतु, हे कौंतेय! जगत घटमाल[1] की भाँति घूमा करता है।

अवजानन्ति मां मूढ़ा मानुषी तनुमाश्रितम्।
परं भावमजान्न्‍तो मम भूतमहेश्‍वरम्।।11।।

प्राणी मात्र का महेश्‍वर रूप जो मैं हूँ उसके भाव को न जानकर मूर्ख लोग मुझ मनुष्‍य-तनधारी की अवज्ञा करते हैं।

टिप्‍पणी- क्‍योंकि जो लोग ईश्वर की सत्ता नहीं मानते, वे शरीर स्थित अंतर्यामी को नहीं पहचानते और उसके अस्तित्‍व को न मानते हुए जड़वादी बने रहते हैं।

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतस:।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिता:।।12।।

व्‍यर्थ आशा वाले, व्‍यर्थ काम करने वाले और व्‍यर्थ ज्ञान वाले मूढ़ लोग मोह में डाल रखने वाली राक्षसी या आसुरी प्रकृति का आश्रय लेते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रहट

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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