गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-बोध
चौथा अध्याय
यज्ञ-2 मंगलप्रभात यज्ञ के विषय में पिछले सप्ताह लिखकर भी इच्छा पूरी नहीं हुई। जिस चीज को जन्म के साथ लेकर हमने इस संसार में प्रवेश किया है, उसके बारे में कुछ अधिक विचार करना व्यर्थ न होगा। यज्ञ नित्य-कर्त्तव्य है, चौबीसों घंटे आचरण में लाने की वस्तु है, इस विचार से और यज्ञ का अर्थ सेवा समझकर ʻपरोपकाराय सतां विभूतय:ʼ वचन कहा गया है। निष्काम सेवा परोपकार नहीं है, बल्कि अपने निज के ऊपर उपकार है। जैसे कर्ज चुकाना परोपकार नहीं, बल्कि अपनी सेवा है, अपने ऊपर उपकार है, अपने ऊपर से भार उतारना है, अपने धर्म को बचाना है। फिर कोई संत की ही पूंजी ʻपरोपकारार्थʼ - अधिक सुंदर भाषा में कहिये तो - ʻसेवार्थʼ हो, सो नहीं है, बल्कि मनुष्य मात्र की पूंजी सेवार्थ है और यह होने पर सारे जीवन में भोग का खातमा हो जाता है, जीवन त्यागमय हो जाता है, या यों कहें कि मनुष्य का त्याग ही उसका भोग है। पशु और मनुष्यों के जीवन में यह भेद है। जीवन का यह अर्थ जीवन को शुष्क बना देता हे, इससे कला का नाश हो जाता है, अनेक लोग यह आरोप करके उक्त विचार को सदोष समझते हैं, पर मेरे ख्याल में ऐसा कहना त्याग का अनर्थ करना है। त्याग के मानी संसार से भागकर जंगल में जा बसना नहीं है, बल्कि जीवन की प्रवृत्ति मात्र में त्याग का होना है। गृहस्थ-जीवन त्यागी और भोगी दोनों हो सकता है। मोची का जूते सीना, किसान का खेती करना, व्यापारी का व्यापार करना और नाई का हजामत बनाना त्याग-भावना से हो सकता है या उसमें भोग की लालसा हो सकती है। जो यज्ञार्थ व्यापार करता है, वह करोड़ों के व्यापार में भी लोकसेवा का ही खयाल रखेगा, किसी को धोखा नहीं देगा, अकरणीय साहस नहीं करेगा, करोड़ों की सम्पत्ति रखते हुए भी सादगी से रहेगा, करोड़ों कमाते हुए भी किसी की हानि नहीं करेगा। किसी की हानि होती होगी तो करोड़ों से हाथ धो देगा। कोई इस खयाल से न हँसे कि ऐसा व्यापारी मेरी कल्पना में बसता है। संसार के सौभाग्य से ऐसे व्यापारी पश्चिम और पूर्व दोनों में हैं। हों चाहे अंगुलियों पर ही गिनने-भर को, पर एक भी जीवित उदाहरण रखने पर उसे फिर कल्पना की वस्तु नहीं कह सकते। ऐसे दरजी को हमने बढ़वाण में ही देखा है। ऐसे एक नाई को मैं जानता हूँ और ऐसे बुनकर को हम लोगों में से[1] कौन नहीं जानता। देखने-ढूंढ़ने पर हम सब धंधों में केवल यज्ञार्थ अपना धंधा करने और तदर्थ जीवन बिताने वाले आदमी पा सकते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यानी आश्रमवासियों में से
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