गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
आठवां अध्याय
अक्षरब्रह्म्रयोग
अव्यक्ताद्वयक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे। ब्रह्मा का दिन आरंभ होने पर सब अव्यक्त में से व्यक्त होते हैं और रात पड़ने पर उनका प्रलय होता है अर्थात अव्यक्त में लय हो जाते हैं। टिप्पणी- यह जानकर भी मनुष्य को समझना चाहिए कि उसके हाथ में बहुत थोड़ी सत्ता है। उत्पत्ति और नाश का जोड़ा साथ-साथ चलता ही रहता है। भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते। हे पार्थ! यह प्राणियों का समुदाय इस तरह पैदा हो-होकर रात पड़ने पर बरबस लय होता है और दिन उगने पर उत्पन्न होता है। परस्तस्मात्तु भावोऽन्यो- इस अव्यक्त से परे दूसरा सनातन अव्यक्त भाव है। समस्त प्राणियों का नाश होते हुए वह सनातन अव्यक्त भाव नष्ट नहीं होता। अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां गतिम्। जो अव्यक्त, अक्षर[1] कहलाता है, उसी को परमगति कहते हैं जिसे पाने के बाद लोगों का पुनर्जन्म नहीं होता, वह मेरा परमधाम है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अविनाशी
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