गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
छठा अध्याय
ध्यानयोग
प्राप्य पुण्कृतां लोका- पुण्यशाली लोगों को मिलने वाले स्थान को पाकर और वहां बहुत समय तक रहकर योग-भ्रष्ट मनुष्य पवित्र और साधन- वाले के घर जन्म लेता है। अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। या ज्ञानवान योगी के ही कुल में वह जन्म लेता है। संसार में ऐसा जन्म अवश्य बहुत दुर्लभ है। तत्र तं बुद्धियोगं लभते पौर्वदेहिकम्। हे कुरुनन्दन! वहाँ उसे पूर्व-जन्म के बुद्धि-संस्कार मिलते हैं और वहाँ से वह मोक्ष के लिए आगे बढ़ता है। पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि स:। उसी पूर्वाभ्यास के कारण वह अवश्य योग की ओर खिंचता है। योग का जिज्ञासु तक सकाम वैदिक कर्म करने वाले की स्थिति को पार कर सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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