गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
छठा अध्याय
ध्यानयोग
अयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानस:। अर्जुन बोले- हे कृष्ण! जो श्रद्धावान तो है पर यत्न में मंद होने के कारण योग-भ्रष्ट हो जाता है, वह सफलता न पाने पर कौन-सी गति पाता है? कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति। हे महाबाहो! योग से भ्रष्ट हुआ, ब्रह्ममार्ग में भटका हुआ वह भिन्न भिन्न बादलों की भाँति उभयभ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता? एतन्मे संशयं कृष्ण छेतुमर्हस्यशेषत:। हे कृष्ण! मेरा यह संशय दूर करने में आप समर्थ हैं। आपके सिवा दूसरा कोई इस संशय को दूर करने वाला नहीं मिल सकता। श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले- हे पार्थ! ऐसे मनुष्यों का नाश न तो इस लोक में होता है, न परलोक में। हे तात! कल्याण मार्ग में जाने वाले की कभी दुर्गति होती ही नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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