गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
पांचवां अध्याय
कर्मसंन्यासयोग
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्। यज्ञ और तप के भोक्ता, सर्वलोक के महेश्वर और भूतमात्र के हित करने वाले ऐसे मुझको जानकर[1] शांति प्राप्त करता है। टिप्पणी- कोई यह न समझे कि इस अध्याय के चौदहवें, पंद्रहवें तथा ऐसे ही दूसरे श्लोकों का यह श्लोक विरोधी है। ईश्वर सर्वशक्तिमान होते हुए कर्त्ता-अकर्त्ता, भोक्ता-अभोक्ता, जो कहो सो है और नहीं है। वह अवर्णनीय है। मनुष्य की भाषा से वह अतीत है। इससे उसमें परस्पर विरोधी गुणों और शक्तियों का भी आरोपण करके, मनुष्य उसकी झांकी की आशा रखता है। ॐतत्सत् इति श्रीमद्भवद् गीता रूपी उपनिषद, अर्थात् ब्रह्मविद्यान्तर्गत योगशास्त्र के श्री कृष्णार्जुन संवाद का ʻकर्मसंन्यासयोगʼ नामक पांचवा अध्याय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उक्त मुनि
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