गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 101

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
चौथा अध्याय
ज्ञानकर्मसंन्‍यासयोग


श्रेयान्‍द्रव्‍यमयाद्यज्ञाज्‍ज्ञानयज्ञ: परंतप।
सर्व कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्‍यते।।33।।

हे परंतप! द्रव्‍ययज्ञ की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ अधिक अच्‍छा है, क्‍योंकि हे पार्थ! कर्म मात्र ज्ञान में ही पराकाष्‍ठा को पहुँचते हैं।

टिप्‍पणी- परोपकार-वृति से दिया हुआ द्रव्‍य भी यदि ज्ञानपूर्वक न दिया गया हो तो बहुत बार हानि करता है, यह कितने अनुभव नहीं किया है? अच्‍छी वृत्ति से होने वाले सब कर्म तभी शोभा देते हैं जब उनके साथ ज्ञान का मेल हो। इसलिए कर्ममात्र पूर्णाहुति तो ज्ञान में ही है।

तद्विद्वि प्रणिपातेन परिप्रश्‍नेन सेवया।
उपदेश्‍यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्‍तत्‍वदशिन:।।34।।

इसे तू तत्‍व को जानने वाले ज्ञानियों की सेवा करके और नम्रतापूर्वक विवेक सहित बारम्‍बार प्रश्‍न करके जानना। वे तेरी जिज्ञासा तृप्‍त करेंगे।

टिप्‍पणी- ज्ञान प्राप्‍त करने की तीन शर्ते- प्रणिपात, परिप्रश्‍न और सेवा इस युग में खूब ध्‍यान में रखने योग्‍य हैं। प्रणिपात अर्थात नम्रता विवेक, परिप्रश्‍न अर्थात बारम्‍बार पूछना, सेवारहित नम्रता खुशामद में शुमार हो सकती है। फिर, ज्ञान खोज के बिना संभव नहीं है, इसलिए जब तक समझ में न आवे तब तक शिष्‍य का गुरु से नम्रतापूर्वक प्रश्‍न पूछते रहना जिज्ञासा की निशानी है। इसमें श्रद्धा की आवश्‍यकता है। जिस पर श्रद्धा नहीं होती उसकी ओर हार्दिक नम्रता नहीं होती, उसकी सेवा तो हो ही कहाँ से सकती है ?

यज्‍ज्ञात्‍वा न पुनमर्मोहमेवं यास्‍यसि पाण्‍डव।
येन भूतान्‍यशेषेण द्रक्ष्‍यस्‍यात्‍मन्‍यथो मयि।।35।।

यह ज्ञान पाने के बाद, हे पांडव! तुझे फिर ऐसा मोह न होगा। इस ज्ञान के द्वारा तू भूतमात्र को आत्‍मा में और मुझमें देखेगा।

टिप्‍पणी-ʻयथा पिण्‍डे तथा ब्रह्माण्‍डे̕ का यही अर्थ है। जिसे आत्‍मदर्शन हो गया है वह अपनी और दूसरे की आत्मा में भेद नहीं देखता।

अपि चेदसि पापेभ्‍य: सर्वेभ्‍य: पापकृत्तम:।
सर्व ज्ञानप्‍लवेनैव वृजिनं संतरिष्‍यसि।।36।।

तू समस्‍त पापियों में बडे़-से-बडे़ पापी होने पर भी ज्ञानरूपी नौका द्वारा सब पापों को पार कर जायगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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