गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द7.आर्य क्षत्रिय -धर्म
अपने सुख, प्राप्ति और लाभ को मत देख, बल्कि ऊपर की ओर और चारों ओर देख, ऊपर उस प्रकाशमय शिखर को देख जिसकी ओर तू चढ़ रहा है, और अपने चारों और इस संग्राममय और संकटपूर्ण जगत् को देख जिसमें शुभ और अशुभ, उन्नति और अवनति परस्पर घोर संघर्ष में जकडे़ हुए हैं। लोग तुझे सहायता के लिये पुकारते हैं, तू उनका लौह पुरुष है, लोकनायक है, सहायता कर, लड़, संहार कर अगर संहार के द्वारा ही जगत् की प्रगति हो, लेकिन जिसका संहार करे उससे घृणा न कर और न मरे हुए के लिये शोक ही कर। सर्वत्र उस एक ही आत्मा को जान, सब प्राणियों को अमर आत्मा और शरीर को सब मिट्टी जान। अपना काम स्थिर, दृढ और सम भाव से कर, लड़ और शान से मैदान में काम आ, या फिर पराक्रम से विजय प्राप्त कर। क्योंकि भगवान् ने और तेरे स्वभाव ने तुझे यही काम पूरा करने के लिये दिया है।“ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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