गीता-प्रबंध: भाग-2 खंड-2: परम रहस्य
13.क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ
ये क्षेत्र आवश्यक शक्तियां हैं; ये सब एक ही साथ मानसिक, प्राणिक और भौतिक प्रकृति की सर्वसामान्य और सार्वभौम शक्तियां भी हैं। सुख और दुःख, राग और द्वेष क्षेत्र के प्रधान विकार हैं। वैदांतिक दृष्टिकोण से हम कह सकते हैं कि सुख और दुःख प्राणिक या संवेदनात्मक विकृत रूप हैं जो आत्मा के सहज आंनद को निम्नतमर शक्तियों की क्रियाओं के संपर्क में आने पर इसके द्वारा प्राप्त होते हैं। और इसी और बिंदु से हम कह सकते हैं कि राग और द्वेष तदनुरूप मानसिक विकृत रूप हैं; ये रूप निम्न शक्ति के द्वारा आत्मा के उस प्रतिक्रियाकारी संकल्प को प्रदान किये जाते हैं जो इस ऊर्जा के संपर्कों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया निर्धारित करता है। ये सुख-दुःख आदि द्वन्द्व भावात्मक और अभावात्मक रूप हैं जिनमें निम्नतर प्रकृति का अहंभावापन्न जीव संसार का उपयोग करता है। अभावात्मक रूप-वेदना, घृणा, दुःख, जुगुप्सा आदि-विकृत या, अधिक-से-अधिक, अज्ञान द्वारा विपर्यस्त प्रतिक्रियाएं हैं: भावात्मक रूप-राग, सुख, हर्ष, आकर्षण-कुप्रेरित प्रति-क्रियाएं हैं, अथवा अपने अच्छे-से अच्छे रूप में भी, ये अपर्याप्त हैं तथा सच्चे आध्यात्मिक अनुभव की प्रतिक्रियाओं से हीनकोटि की हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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