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गीता-प्रबंध: भाग-2 खंड-1: कर्म, भक्ति और ज्ञान का समन्वयव
12.मार्ग और भक्त
और यह नहीं समझ लेना चाहिये कि क्योंकि यह अधिक दुर्गम है, इसलिये यह एक उच्चतर एवं अधिक फलप्रद पद्धति है। गीता का सुगमतर मार्ग उसी चरम मोक्ष की ओर अधिक तेजी से, अधिक स्वाभाविक और सर्वसुलभ रूप से ले जाता है। क्योंकि, उसका दिव्य ‘पुरुष’ को स्वीकार करना देहधारी प्रकृति की मानसिक तथा ऐन्द्रियक सीमाओं के प्रति किसी प्रकार की आसक्ति को नहीं सूचित करता है। इसके विपरीत, वह आवागमन के प्राकृत बंधन से शीघ्र ही और प्रभावशाली रूप में मुक्त कर देता है। ऐकातिक ज्ञानमार्ग का योग अपनी प्रकृति की बहुविध मांगों के साथ एक दुःखदायी संघर्ष को अपने ऊपर लाद लेता है; यहाँ तक कि वह उन्हें उनकी उच्चतम तृप्ति प्रदान करने से भी इंकार करता है और अपनी आत्मा के उर्ध्वमुख संवेगों को भी उखाड़ फेंकता है जब कभी वे संबंधों को अपने अंतर्गत रखते हैं अथवा निषेधकारी ‘केवल’ से कुछ नीचे रह जाते हैं दूसरी ओर, गीता का जीवांत मार्ग हमारी संपूर्ण सत्ता को अत्यंत बलवती ऊर्ध्वामुख प्रवृत्ति को ढूंढ़ निकालता है और उसे ईश्वर की ओर मोड़कर ज्ञान, संकल्प, भाव और पूर्णत्व की सहज प्रेरणा को आरोही मोक्ष के इतने सारे सशक्त पंखों की न्याई प्रयुक्त करता है। अपने अनिर्देश्य एकत्व से युक्त अव्यक्त ब्रह्म एक ऐसी सत्ता है जिसतक देहधारी आत्माएं केवल पहुँच ही सकती हैं, और भी बड़ी कठिनाई के साथ और सभी अवदमित अंगों के अनवरत दमन तथा पीड़न और प्रकृति के उग्र कष्ट-क्लेश के द्वारा ही, दु:खमवाप्यते, क्ल्र्शोऽधिकतरस्तेषाम्।
वह अनिर्देश्य एकत्व अपनी ओर आरोहण करने वाले सभी लोगों को स्वीकार करता है, पर आरोहण करने वाले को न तो किसी प्रकार की संबंधात्मक सहायता
प्रदान करता है और न उसे पैर जमाने की जगह ही देता है। सब कुछ कठोर तपस्या और कठिन तथा असहाय वैयक्तिक पुरुषार्थ के द्वारा ही करना होता है। पर जो गीतोक्त मार्ग के अनुसार पुरुषोत्तम की खोज करते हैं उनका प्रयास कितने भिन्न प्रकार का है। जब वे एक ऐसे योग के द्वारा पुरुषोत्तम का ध्यान करते हैं जो वासुदेव के सिवा और किसी को नहीं देखता, क्योंकि वह सबको उन्हीं के रूप में देखता है, तो वे प्रत्येक स्थल पर, प्रत्येक क्षण, सदा-सर्वथा अपने अगणित रूपों तथा आकृतियों के साथ उनसे मिलते हैं, उनके अंदर के ज्ञानदीप को ऊपर उठाते हैं तथा उसकी दिव्य सुखद ज्योति से संपूर्ण सत्ता को परिल्पावित कर देते हैं।
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