गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द20.समत्व और ज्ञान
यह मुक्त स्थिति और यह एकत्व हमारी मानव-प्रकृति का गुप्त लक्ष्य है और यही मानव-जाति के जीवन में अंतर्निहित चरम इच्छा है। इसी की ओर मनुष्यजाति को उस सुख की प्राप्ति के लिये मुड़ना होगा जिसे वह अभी तक नहीं खोज पायी। पर यह तब होगा जब मनुष्यों की आखें खुलेंगी और वे अपनी इन आंखों और अपने इन हृदयों को ऊपर उठाकर अपने में, अपने चारों ओर, सब भूतों में, सर्वेषु भूतेषु, और ‘सर्वत्र’ भगवान् को देखने लगेंगे और यह जान लेंगे कि हम तब भगवान् में ही रहते हैं और हमारी यह भेदजनक निम्न प्रकृति केवल एक कैदखाने की दीवार है जिसे तोड़ डालना होगा, या फिर यह बच्चों के पढ़ने की एक पाठशाला है जिसकी पढ़ाई खतम करके आगे बढ़ना होगा जिससे हम प्रकृति में प्रौढ़ और आत्मा में मुक्त हो जायें। ऊर्ध्वस्थित भगवान् के साथ मनुष्य में और जगत मेंस्थित भगवान के साथ एकात्मभाव को प्राप्त होना ही मुक्ति का अभिप्राय और संसिद्धि का रहस्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज