गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द16.भगवान् की अवतरण-प्रणाली
पहले कई पशुरूप, बाद में नरसिंह-मूर्ति, तब वामन-मूर्ति, उसके बाद प्रचंड आसुरिक परशुराम, फिर देव-प्रकृति-मानव महत्तर राम, इसके बाद सजग आध्यात्मिक बुद्ध, और काल के हिसाब से पहले पर स्थान के हिसाब से अंतिम, पूर्ण दिव्य भावापन्न मुनष्य श्रीकृष्ण क्योंकि आखिरी अवतार कल्कि केवल श्रीकृष्ण के द्वारा आरंभ किये हुए कर्म को ही संपन्न करते हैं, पहले के अवतार समस्त संभावनाओं से युक्त जिस महत् प्रयास को प्रस्तुत कर गये हैं, बल्कि उसीको शक्ति देकर सिद्ध करते हैं। हमारी आुधनिक मनोवृत्ति के लिये इसे स्वीकार करना कठिन है, किंतु ऐसा मालूम होता है कि गीता की भाषा का रूख इसी ओर है। अथवा जब गीता इस समस्या का साफ तौर पर हल नहीं करती तब हम अपने किसी दूसरे तरीके से इस प्रश्न को हल कर सकते हैं और कह सकते हैं कि अवतार का शरीर तो जीव के द्वारा निर्मित होता है पर जन्म से ही भगवान उसे धारण करते हैं, अथवा यह भी कह सकते हैं कि इस शरीर को अर्थात् प्रत्येक मानव मन और शरीर के आध्यात्मिक पितर प्रस्तुत करते हैं। इस तरह से कहना अवश्य ही गूढ़ रहस्यमय क्षेत्र की गहराई में प्रवेश करना है कि जिसकी बातें आधुनिक बुद्धिवादी लोग अभी तो सुनना ही नहीं चाहते; परंतु जब हमने अवतार का होना मान लिया जब रहस्यमय क्षेत्र में तो प्रविष्ट हो ही गये और जब प्रतिष्ट हो गये तो एक-एक कदम मजबूती से रखते हुए बढ़ते चलना ही उत्तम है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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