गीता-प्रबंध -श्री अरविन्द16.भगवान की अवतरण-प्रणाली
परंतु, ऊपर उस लोक में, जो हमारे अंदर है पर अभी हमारी चेतना के परे है, जिसे प्रचीन तव्दर्शियों ने स्वर्ग कहा है, वहाँ ये ईश्वर और यह जीव दोनों एक साथ एक ही स्वरूप में प्रत्यक्ष होते हैं। इन्ही को कुछ संप्रदायों की सांकेतिक भाषा में पिता और पुत्र कहा गया है-पिता है भागवत पुरुष और पुत्र है भागवत मनुष्य जो नहीं से उन्हीं की परा प्रकृति से, परा माया से निम्न, मानव-प्रकृति में जन्म लेता है। इन्हीं परा प्रकृति, परा माया को जिनके द्वारा यह जीव अपरा मानव प्रकृति में उत्पन्न हेाता है, कुमारी माता [1] कहा गया है। ईसाइयों के अवतारवाद का यही भीतरी रहस्य प्रतीत होता है। त्रिमूर्ति में पिता ऊपर इसी अंत: स्वर्ग में है ; पुत्र तथा गीता की जीवभूता परा प्रकृति इस लोक में, इस मानव-शरीर में दिव्य या देव-मनुष्य के रूप में है; और पवित्र आत्मा (होली स्पिरिट ) दोनों को एक बना देती है और दूसरी में इन दोनों को परस्पर-व्यवहार होती है; क्योंकि यह प्रसिद्ध है कि यह पवित्र आत्मा ईसा में उतर आयी थी और इसी अवतरण के फलस्वरूप ईसा के शिष्यों में भी, जो सामान्य मानव-कोटि के थे, उस महत् चैतन्य की क्षमता आ गयी थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बौद्ध आख्यायिका में गौतम बुद्ध की माता का नाम इस सांकेतिक भाषा को खोल देता है ; ईसाइयों के यहाँ यह संबंध सुपरिचित पौराणिक कथाओं की रचना-प्रणाली के अनुसार नजरेथ के ईसा की मानुषी माता के साथ जोड़ दिया गया है।
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