गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 401

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-4
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
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“कैकेय्यां भरतो जज्ञे पान्चजन्यांशसम्भवः।
अनन्तांशेन सम्भूतो लक्ष्मणाः परवीरहा।।
सुदर्शनांशाच्छत्रुघ्नः संजज्ञेऽमित विक्रमः।।” [1]

भरत पान्चजन्य[2] के अवतार थे; लक्ष्मण शेष नाग के और शत्रुघ्न सुदर्शन चक्र के अवतार थे।”

बाल्यावस्था में ही राम और लक्ष्मण ने ताड़का, मारीच व उसके भाई सुबाहु आदि असुरों को, मारकर महर्षि विश्वामित्र का यज्ञ सम्पन्न किया। फिर विश्वामित्र के साथ विदेहराज जनक की मिथिलापुरी में सीय स्वयंवर में गए, मार्ग में शिलारूपा गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या राम के चरण स्पर्श से शापमुक्त हो स्त्री रूप में परिणित हो गई। इसके पश्चात् जनकपुरी में जाकर शिवजी का धनुष भंग कर परशुराम का गर्व खंडित किया। सीरध्वज विदेहराज जनक ने अपनी कन्या सीता और उर्मिला का विवाह राम और लक्ष्मण से तथा अपने छोटे भाई कुशध्वज[3]की कन्या माण्डवी और श्रुतकीर्ति का विवाह यथाक्रम भरत और शत्रुघ्न से किया।

राम का विवाह हो जाने के पश्चात् महाराज दशरथ ने राम को युवराज बनाना चाहा। उस समय कैकेयी के पुत्र भरत व शत्रुघ्न अपने ननिहाल में थे। कैकेयी ने इसे दशरथ का षडयन्त्र समझा। देवताओं की प्रेरणा से कैकई की बुद्धि विपरीत हो गई, उसने राजा दशरथ से भरत को राज्य देने का व राम को चतुर्दश वर्य पर्यन्त वनवास देने के वचन माँगे। राम-लक्ष्मण का प्राकट्य “रक्षा करने साधुजनों की, दुष्टों का करने संहार” ही हुआ था अतः श्रीराम, सीता व लक्ष्मण सहित माता कैकेयी की आज्ञा से चतुर्दष वर्ष के लिए वन को चले गए। वन में राम, लक्ष्मण और सीता महर्षि भरद्वाज और वाल्मीकि के आश्रम में गए और चित्रकूट पर पर्णकुटी बनाकर रहने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद्मपुराण
  2. भगवान नारायण के शंख का नाम। यह शंख पान्चजन्य नामक राक्षस की अस्थि से बना था इस कारण इस शंख का नाम पान्चजन्य है
  3. या कुशकेतु

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
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- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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