गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय- 1
(अर्जुन विषाद-योग)
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संजय उचाव
(24-25)
एवमुक्तो हृषीकेशो
गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये
स्थापयित्वा रथोत्तमम्।।24।।
भीष्म द्रोण प्रमुखतः
सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पाथ पश्यैतान्
समवेतान्कुरुनिति।।25।।
संजय ने कहा
(24-25)
कहने पर यह गुडाकेश[1] के
हृषीकेश ने भारत! लेके।
दिव्य रथ को विषम बेला में
स्थित कर उभय दल मध्य में।।24।।
फिर भीष्म व द्रोण के
सभी महिपालों के।
सामने पार्थ को कहा कि देख लो
समवेत[2] इस कौरव समुदाय को।।25।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ निद्रा या आलस्य को जीतने वाला।
- ↑ एकत्रित।
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