गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 136

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय- 1
(अर्जुन विषाद-योग)
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(11)
अयनेषु च सर्वेषु
यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु
भवन्तः सर्व एव हि।।

(11)
अतएव सेना के अयन[1] प्रत्येक पर
अवस्थित[2] यथाभाग[3]जो जो भी हैं।
उन सब वीरों को अयन प्रत्येक पर
रखना अभिरक्षित भीष्म ही को है।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. व्यूह का प्रवेश द्वार।
  2. स्थित व नियुक्त।
  3. अपने-अपने पद व स्थान पर। “रखना अभिरक्षित भीष्म ही को है”-भीष्म पितामह जैसे अजेय महारथी की रक्षा करने की चिन्ता दुर्योधन को इस कारण से हुई कि राजा द्रुपद का पुत्र “शिखंडी” पाण्डव सेना में था जो भीष्म की मृत्यु का कारण था। यह शिखंडी क्लीव (नपुंसक) था और नपुंसक पर हथियार न चलाने की व उसको लक्ष न करने की भीष्म की प्रतिज्ञा थी। अतः दुर्योधन के कहने का तात्पर्य यह था कि शिखंडी को भीष्म के सामने न आने दिया जावे यही प्रयास भीष्म की रक्षा करना था। किन्तु शिखंडी भीष्म के सामने खड़ा किया गया, उसे सम्मुख देख भीष्म ने जब धनुष-बाण त्याग दिए और निःशस्त्र हो गए तब अर्जुन ने भीष्म को आहत कर डाला।

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अंतिम पृष्ठ 1142

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