गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
(अर्जुन विषाद-योग)
अपरिमितअपरिमित तथा परिमित सेना-कौरव सेना की संख्या 11 अक्षौहिणी तथा पाण्डव सेना 7 अक्षौहिणी थी, इस प्रकार 4 अक्षौहिणी सेना ज्यादा होने के कारण दुर्योधन अपनी सेना को अपरिमित[1] बताता है और पाण्डव सेना को कम होने के कारण परिमित अर्थात् सीमित बताता है। अक्षौहिणी सेना की गणना इस प्रकार है-एक अक्षौहिणी सेना में 21870 रथ, 21870 हाथी, 65610 घोड़े, 109350 पैदल सिपाही होते हैं। इन सबको 11 गुना करने से कौरवों की 11 अक्षौहिणी सेना का बल यह होता है-240570 रथ, 240570 हाथी, 721710 घोड़े व 1202850 पैदल योद्धा होते हैं। इनके अतिरिक्त हाथी, घोड़ों के परिचायक महावत आदि और थे। इसी प्रकार एक अक्षौहिणी की सात गुनी सेना 7 अक्षौहिणी पाण्डव पक्ष की थी।
श्लोक 10 में दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को अपनी व पाण्डवों की सेना का परिचय कराकर कहा है कि - “अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्” इसका अर्थ है कि सेना के सेनाध्यक्ष भीष्म पितामह थे। युद्ध के विषय में भी जो भी मन्त्रणा की जाती है वह सेनाध्यक्ष से की जाती है किन्तु यहाँ दुर्योधन ने भीष्म से मन्त्रणा न कर द्रोणाचार्य से की है। दुर्योधन ने ऐसा क्यों किया? यह एक रहस्यमय शंका है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अपार
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