गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 129

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय- 1
अर्जुन विषाद-योग
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(4)
अत्र शूरा महेष्वासा
भीमार्जुसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च
द्रपदश्च महारथः।।

(4)
धनुर्धर महारथी[1] तथा शूरवीर युयुधान[2]
सात्यकी[3] विराट[4] व द्रुपदराज[5]
भीम व अर्जुन समान ही धीर वीर
हैं पाण्डव सेना में, सब ये द्विजराज!।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (4) दस हजार योद्धाओं से युद्ध करने वाला महारथी कहलाता था।
  2. (5) योद्धा: शूरवीर।
  3. (6) सात्यकि:- यह यादव था सात्वत वंश के राजा शिनि का पुत्र तथा कृष्ण का सारथी था। सात्यकि को धनुष विद्या अर्जुन ने ही सिखाई थी और कौरव पक्ष के भूरिश्रवा योद्धा को सात्यकि ने ही मारा था।
  4. (7) विराटः - यह मत्स्य देश का राजा था। पाण्डवों ने एक वर्ष का अज्ञातवास छद्मवेश में विराट राजा के यहाँ व्यतीत किया था। विराट की कन्या उत्तरा से अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का विवाह हुआ था। महाभारत युद्ध के बाद जो हस्तिनापुर का राजा परिक्षित नाम का हुआ वह उत्तरा से अभिमन्यु का पुत्र था।
  5. (8) द्रुपदराजः - इनका वृत्तान्त अवतरणिका पृष्ठ 13 पर देखो।

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1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
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17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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