गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन
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(13)
पत्र-पुष्प-तुलसी-दल जल भी
सुर नर मुनि तथा असुर भी।
खल कुटिल पापी कामी भी
जब पी “गीताऽमृत” मुक्त बनें;
तो वशिष्ठ वंशज यह “गुलाब” ही।
“गीताऽमृत” पी क्यों न मुक्त बने।।
(14)
जय वशिष्ठ वंशज हे व्यास
जय पराशरात्मज व्यास।
जय वेद-पुराण विधाता व्यास
जय निर्माता धर्म-इतिहास।।
(15)
जय भारत संस्कृति रक्षक व्यास
जय भारत भाग्य विधाता व्यास।
जय लोक-हितकारी व्यास
हो तब जय जय सदा हे व्यास।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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