गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 121

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन
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(13)
पत्र-पुष्प-तुलसी-दल जल भी
सुर नर मुनि तथा असुर भी।
खल कुटिल पापी कामी भी
जब पी “गीताऽमृत” मुक्त बनें;
तो वशिष्ठ वंशज यह “गुलाब” ही।
“गीताऽमृत” पी क्यों न मुक्त बने।।

(14)
जय वशिष्ठ वंशज हे व्यास
जय पराशरात्मज व्यास।
जय वेद-पुराण विधाता व्यास
जय निर्माता धर्म-इतिहास।।

(15)
जय भारत संस्कृति रक्षक व्यास
जय भारत भाग्य विधाता व्यास।
जय लोक-हितकारी व्यास
हो तब जय जय सदा हे व्यास।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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