गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन
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(5)
देख पराशर ब्रह्म-तेज को
कामाऽहत यह कन्या हुई।
ऋषि-योग से फिर धन्या वो
योजन-गन्धा प्रख्यात हुई।।
इस योग से ही यह कन्या।
जननी श्री वेद-व्यास हुई।।
(6)
मुनि पराशर ब्रह्मर्षि से
प्रागट्य हुआ जो व्यास का।
था अवतार यथार्थ रूप से
ज्ञान-कर्म व भक्ति-योग का।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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