गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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(67)
इदं ते नातपस्काय
ना भक्ताय कदाचन।
न चाशुश्रुषवे वाच्यं
न च मां योऽभ्यसूयति ॥
इस कर्म-योग के गूढोपदेश को
भक्ति हीन वा अतपस्वी[1] जन को।
मेरे निन्दक वा अशुश्रुत-मनस्क[2] को
कहना न सुनाना ऐसे जन को।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जो तप न करने के कारण तपस्वी नहीं है
- ↑ जो सुनना न चाहता हो
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