गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
पाठकों के इस सन्देह का निवारण संजय द्वारा ही गीता के अध्याय 18 श्लोक 74 व 75 में करा दिया गया है, जहाँ संजय ने धृतराष्ट्र को कहा है किः- वासुदेव कृष्ण तथा अतः अब प्रश्न उठता है कि व्यास मुनि का क्या प्रसाद[1] था, जिसके फलस्वरूप संजय के कुरुक्षेत्र की समस्त घटनाओं को राजभवन में बैठे-बैठे ही देख लिया। इसकी कथा इस प्रकार हैः- युद्ध आरम्भ होने से पहले महर्षि व्यास धृतराष्ट्र के पास गये और उसको वह दिव्य दृष्टि देने को कहा जिसके द्वारा वह राजभवन में बैठा ही जन्मान्ध हुए भी महाभारत युद्ध देख सके। धृतराष्ट्र ने अपने कुल का क्षय अपनी आँखों से देखना उचित नहीं समझा और महर्षि व्यास द्वारा प्रस्तावित दिव्य दृष्टि को ग्रहण करने से इन्कार कर दिया। इस पर व्यास मुनि ने वह दिव्य दृष्टि संजय को प्रदान कर दी जिसकी सहायता से संजय ने समस्त वृतान्त साक्षात देखा और सुना तथा धृतराष्ट्र को सुनाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अनुग्रह
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