गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
संजयः- संजय को सूत भी कहते हैं। संजय राजा धृतराष्ट्र का सारथी था और विद्वान होने के कारण धृतराष्ट्र का मन्त्री भी था। धृतराष्ट्र संजय से मन्त्रणा किया करता था। “क्षत्रियाद्विप्रकन्यायं सूतो भवति जातितः” यह सूत की व्याख्या की गई है। इस व्याख्या के अनुसार यह सन्तान सूत होती थी जो क्षत्रि जाति के पुरुष व ब्राह्मण जाति की स्त्री के मेल से उत्पन्न होती थी। इस सूत सन्तान का व्यवसाय रथ चलाना होता था और यह लोग सारथी हुआ करते थे। इनके अतिरिक्त दूसरे प्रकार के सूत और हुआ करते थे। इनकी उत्पत्ति का इस प्रकार बताई गई है कि यह लोग वैश्य पुरुष क्षत्रि जाति की स्त्री से उत्पन्न होने वाले होते थे। इस मेल से उत्पन्न होने वाले सूत का व्यवसाय वैत्तालिक होता था और यह लोग बन्दीजन हुआ करते थे। महाभारत का युद्ध जब समाप्त हो गया तो धृतराष्ट्र, गान्धारी तथा कुन्ती ने अग्नि में प्रवेश कर प्राण त्याग दिए और संजय हिमाचल प्रदेश में चला गया। हस्तिनापुर के राजमहल में बैठे संजय ने कुरुक्षेत्र की घटनाओं को कैसे देखा?:- गीता का आरम्भ प्रश्नोत्तर रूप में होता है। राजा धृतराष्ट्र अपने सूत तथा मन्त्री संजय से युद्ध के लिये गये हुए अपने पुत्र पाण्डु के पुत्रों के विषय में पूछता है कि दोनों पक्ष की ओर से युद्ध के लिये क्या-क्या साधन किये जा रहे हैं? धृतराष्ट्र के इस प्रश्न पर संजय युद्ध का सम्पूर्ण[1] वृतान्त सुनाता है। अतः यह बात किसी सीमा तक यह सन्देह तथा भ्रम पैदा करती है कि राजभवन में बैठा संजय कुरुक्षेत्र की घटनाओं के विषय में धृतराष्ट्र को कैसे वर्णन कर सकता था, यह असम्भव तथा कपोल कल्पित है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अविकल
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज