गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1116

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
Prev.png

इन आठ साधनों या अंगों को दो भागों में विभक्त किया गया हैः-

(1) यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार यह पाँच बहिरंग साधन हैं; तथा (2) धारणा, ध्यान और समाधि यह तीन अन्तरंग साधन हैं।

(क) धारणा, ध्यान और समाधि के समुदाय को “संयम” कहते हैं; तथा

(ख) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह इन पाँचों का नाम “यम” है।

(ग) शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान, इन पाँवों का नाम “नियम” हैं।

(घ) शरीर को ध्यान और समाधि के योग्य बनाने के लिए शरीर को स्थिति विशेष में स्थित करने या रखने को आसन कहते हैं जिससे योग करने की क्षमता हो। योग के मुख्य-मुख्य आसन वीरासन, ममूरासन, भद्रासन, पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन आदि हैं।

(ङ) श्वास और प्रश्वास की गति को रोकने का नाम प्राणायाम है।

(च) “देशबन्धश्चित्तस्य धारणा” चित्त को किसी एक देश-विशेष में स्थिर करना अर्थात मन को वश में करने की क्रिया को “धारणा” कहते हैं। धारणा की क्षमता प्राप्त किए बिना ध्यान-मग्न होना संभव नहीं।

(छ) इन्द्रियों को अपने-अपने विषय संयोग से रहित व निग्रहीत करना “प्रत्याहार” कहलाता है।

(ज) चित्त को स्थिर करके केवल ध्येय वस्तु में ही लगा देने को “ध्यान” तथा ध्यान की पराकाष्ठा या परमावधि को “समाधि” कहते हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः