गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
मोक्ष-संन्यास-योग
इन आठ साधनों या अंगों को दो भागों में विभक्त किया गया हैः- (1) यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार यह पाँच बहिरंग साधन हैं; तथा (2) धारणा, ध्यान और समाधि यह तीन अन्तरंग साधन हैं। (क) धारणा, ध्यान और समाधि के समुदाय को “संयम” कहते हैं; तथा (ख) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह इन पाँचों का नाम “यम” है। (ग) शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान, इन पाँवों का नाम “नियम” हैं। (घ) शरीर को ध्यान और समाधि के योग्य बनाने के लिए शरीर को स्थिति विशेष में स्थित करने या रखने को आसन कहते हैं जिससे योग करने की क्षमता हो। योग के मुख्य-मुख्य आसन वीरासन, ममूरासन, भद्रासन, पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन आदि हैं। (ङ) श्वास और प्रश्वास की गति को रोकने का नाम प्राणायाम है। (च) “देशबन्धश्चित्तस्य धारणा” चित्त को किसी एक देश-विशेष में स्थिर करना अर्थात मन को वश में करने की क्रिया को “धारणा” कहते हैं। धारणा की क्षमता प्राप्त किए बिना ध्यान-मग्न होना संभव नहीं। (छ) इन्द्रियों को अपने-अपने विषय संयोग से रहित व निग्रहीत करना “प्रत्याहार” कहलाता है। (ज) चित्त को स्थिर करके केवल ध्येय वस्तु में ही लगा देने को “ध्यान” तथा ध्यान की पराकाष्ठा या परमावधि को “समाधि” कहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज