गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1112

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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।। ज्ञान-निष्ठा।।

श्लोक 50 में भगवान कृष्ण ने जिस ज्ञान-निष्ठा का निर्देश किया है वह ज्ञान की परम-निष्ठा क्या है और गीता के उपसंहार में इसका निर्देश क्यों किया गया है? इस भू-लोक में सांख्य-निष्ठा तथा कर्म-योग-निष्ठा का प्रचलित होना अध्याय 2 श्लोक 3 में बताया गया है। सांख्य-मत के मानने वाले संन्यास ग्रहण कर कर्म-संन्यास को ज्ञान-निष्ठा मानते हैं; कर्म-योग-मार्ग को मानने वाले कर्म-योग की सिद्धावस्था को ज्ञान-निष्ठा मानते हैं; तथा भक्ति मार्ग के अनुयायी परमेश्वर परायण भाव-मय हो जाने को ज्ञान-निष्ठा मानते हैं।

सांख्य-शास्त्र ज्ञान-निष्ठा प्रधान शास्त्र है। सांख्य शास्त्र के प्रणेता ब्रह्मा के मानस-पुत्र कपिल मुनि थे जिनको जन्म से ही ज्ञान प्राप्त था। सांख्य मत की यह सिद्धान्त है कि जीवन के तीनों आश्रम अर्थात् ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ व वानप्रस्थ पूरे कर लेने के पश्चात या इनको पूरा करने से पहले ही यदि मनुष्य को सांसारिक जीवन निःसार प्रतीत होने लगे तो वह संसार को छोड़कर संन्यास का चौथा आश्रम ग्रहण कर ले और एकान्त स्थान में या निर्जन वन में बैठकर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करे। इसी कारण सांख्य-मत ज्ञान-निष्ठा मार्ग कहलाता है; कर्म-त्याग का यह मार्ग सांख्य-शास्त्र में संन्यास-मार्ग कहलाता है।


सांख्य-शास्त्र को ज्ञान-निष्ठा प्रधान कहने का एक और कारण यह भी है कि महाभारत महाकाव्य के शान्ति-पर्व में भीष्म पितामह द्वारा सांख्य-शास्त्र के विषय में यह कहा गया है कि;- “सांख्य द्वारा सृष्टि रचना के विषय में जो ज्ञान प्रचलित किया गया है वही ज्ञान पुराण, इतिहास, अर्थ-शास्त्र आदि समस्त शास्त्रों में पाया जाता है और इस जगत में जो भी ज्ञान है वह सब सांख्य-शास्त्र द्वारा ही उपलब्ध हुआ है।” सांख्य-निष्ठा को इस ही कारण ज्ञान-निष्ठा कहते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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