गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 111

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


अवतरणिका
Prev.png

कृपाचार्यः-

कृपाचार्य गौतम ऋषि के पुत्र थे इनके एक बहिन भी थी जिसका नाम “कृपी” था। कृपाचार्य और कृपी को राजा शान्तनु ने अपने पास रक्खा था और पालन-पोषण किया था। इसी कारण बाल्यावस्था से ही कृपाचार्य और कृपी हस्तिनापुर में कौरवों के पास रहते थे।

गौतम ऋषि को धनुर्वेद का अपरिमित ज्ञान था अतः गौतम ने अपने पुत्र कृपाचार्य को चार प्रकार के धनुर्वेद अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और अन्यान्य गुप्त तथा रहस्मय विषयों को सम्पूर्ण शिक्षा दी थी।

कृपाचार्य ने दुर्योधनादिक कौरवों को, अर्जुनादि पाण्डवों को, तथा अन्य कई राजाओं को धनुर्वेद तथा युद्ध-शिक्षा दी थी इसी कारण यह आचार्य कहलाते हैं। कृपाचार्य ने बहुत से युद्ध किए और जितने भी युद्ध किए उन सब में विजयी रहे इस कारण कृपाचार्य रणजीत [1] कहे जाते हैं।

कृपाचार्य की बहिन कृपी का विवाह भीष्म पितामह ने द्रोणाचार्य से किया। द्रोणाचार्य के कृपी से तेजस्वी व पराक्रमी प्रख्यात अश्वत्थामा पुत्र उत्पन्न हुआ। [2]

कृपाचार्य ने अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को अस्त्र-शस्त्र संचालन व युद्ध-विद्या सिखाई थी।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभितिंजयः
  2. जन्म वृत्तान्त महाभारत आदि पर्व. अ. 130 में

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः