गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
कृपाचार्यः- कृपाचार्य गौतम ऋषि के पुत्र थे इनके एक बहिन भी थी जिसका नाम “कृपी” था। कृपाचार्य और कृपी को राजा शान्तनु ने अपने पास रक्खा था और पालन-पोषण किया था। इसी कारण बाल्यावस्था से ही कृपाचार्य और कृपी हस्तिनापुर में कौरवों के पास रहते थे। गौतम ऋषि को धनुर्वेद का अपरिमित ज्ञान था अतः गौतम ने अपने पुत्र कृपाचार्य को चार प्रकार के धनुर्वेद अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और अन्यान्य गुप्त तथा रहस्मय विषयों को सम्पूर्ण शिक्षा दी थी। कृपाचार्य ने दुर्योधनादिक कौरवों को, अर्जुनादि पाण्डवों को, तथा अन्य कई राजाओं को धनुर्वेद तथा युद्ध-शिक्षा दी थी इसी कारण यह आचार्य कहलाते हैं। कृपाचार्य ने बहुत से युद्ध किए और जितने भी युद्ध किए उन सब में विजयी रहे इस कारण कृपाचार्य रणजीत [1] कहे जाते हैं। कृपाचार्य की बहिन कृपी का विवाह भीष्म पितामह ने द्रोणाचार्य से किया। द्रोणाचार्य के कृपी से तेजस्वी व पराक्रमी प्रख्यात अश्वत्थामा पुत्र उत्पन्न हुआ। [2] कृपाचार्य ने अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को अस्त्र-शस्त्र संचालन व युद्ध-विद्या सिखाई थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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