गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
द्रोणाचार्यः- द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। द्रोणाचार्य के जन्म तथा उत्पत्ति के कथा अद्भुत, विचित्र तथा वैज्ञानिक है। भागीरथी गंगा के निकट महर्षि भरद्वाज का परम पावन आश्रम था। एक दिन महर्षि ने गंगा तट पर परम सुन्दरी “धृताची” नाम की अप्सरा को देखा और उसे देखते ही वह कामवश हो गये जिसके कारण उनका चिररक्षित वीर्य स्खलित हो गया। ऋषि ने इस वीर्य को द्रोण नामक पात्र में इस प्रकार से सुरक्षित रख दिया कि वह नष्ट न होने पावे और यथा समय वह पक्व होकर सन्तान रूप में प्रगट हो जावे। अतः द्रोण पात्र से उत्पन्न होने के कारण इनका नाम “द्रोण” रक्खा गया। पांचाल देश के राजा पृषत और ऋषि भरद्वाज की मित्रता थी, इस कारण पृषत का पुत्र द्रुपद और ऋषि कुमार द्रोण दोनों साथ-साथ रहते थे और विद्याध्ययन भी करते थे। द्रोण ने जमदग्नि पुत्र परशुराम से धनुर्वेद आदि सम्पूर्ण युद्धविद्या, सांगोपांग प्रयोग एवं उपसंहार सहित सीखी और परशुराम से ब्रह्मास्त्र प्राप्त किया। राजा द्रुपद से तिरस्कृत होने पर द्रोण हस्तिनापुर चले गये, वहाँ उन्होंने कौरव तथा पाण्डव पुत्रों को युद्ध विद्या में प्रवीण कर गुरु दक्षिणा में राजा दुपद से बदला लिया। द्रोणाचार्य का विवाह भीष्म पितामह ने कृपाचार्य की बहिन कृपी के साथ किया जिससे अश्वत्थामा नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा नाम के हाथी को मारकर यह झूठी खबर फैला दी गई कि द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुन द्रोणाचार्य ने हथियार रखकर लड़ना बन्द कर दिया और इस प्रकार धोखे से उनका वध किया गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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