गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
शिखंडीः- शिखंडी भी राजा द्रुपद का पुत्र तथा धृष्टद्युम्न एवं द्रौपदी का भाई था। यह भी महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की ओर से कौरवों के विरुद्ध लड़ने के लिये आया था। शिखंडी वीर योद्धा होने के साथ ही क्लीव[1] भी था और शिखंडी की क्लीवता ही भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण थी। इसकी कथा इस प्रकार है - भीष्म पितामह की यह प्रतिज्ञा थी कि वह किसी नपुंसक व्यक्ति पर हथियार नहीं उठायेंगे। गीता अध्याय 1, श्लोक 11 में दुर्योधन ने अपनी सेना के अयनों पर नियुक्त प्रत्येक वीर सेनानायक को सावधानी बर्तने के लिये जो ये शब्द कहे हैंः- “अयनूषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थितः। इसका तात्पर्य यही है कि शिखंडी को भीष्म के सामने नहीं आने दिया जाये इसी में भीष्म की रक्षा है, अन्यथा नहीं। किन्तु दुर्योधन का यह प्रयास निष्फल रहा, शिखंडी को भीष्म के सामने खड़ा किया गया, भीष्म ने प्रतिज्ञानुसार अपना धनुष-बाण त्याग दिया और अर्जुन ने कृष्ण की मन्त्रणा से भीष्म को आहत कर डाला। नोटः- पांचाल देश के राजा पृषत, द्रुपद आदि सोमवंशी अर्थात चन्द्रवंशी [2] के पुत्र पुरुरवा के वंशज थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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