गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 109

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


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शिखंडीः-

शिखंडी भी राजा द्रुपद का पुत्र तथा धृष्टद्युम्न एवं द्रौपदी का भाई था। यह भी महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की ओर से कौरवों के विरुद्ध लड़ने के लिये आया था। शिखंडी वीर योद्धा होने के साथ ही क्लीव[1] भी था और शिखंडी की क्लीवता ही भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण थी। इसकी कथा इस प्रकार है -

भीष्म पितामह की यह प्रतिज्ञा थी कि वह किसी नपुंसक व्यक्ति पर हथियार नहीं उठायेंगे। गीता अध्याय 1, श्लोक 11 में दुर्योधन ने अपनी सेना के अयनों पर नियुक्त प्रत्येक वीर सेनानायक को सावधानी बर्तने के लिये जो ये शब्द कहे हैंः-

“अयनूषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थितः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि।।”

इसका तात्पर्य यही है कि शिखंडी को भीष्म के सामने नहीं आने दिया जाये इसी में भीष्म की रक्षा है, अन्यथा नहीं। किन्तु दुर्योधन का यह प्रयास निष्फल रहा, शिखंडी को भीष्म के सामने खड़ा किया गया, भीष्म ने प्रतिज्ञानुसार अपना धनुष-बाण त्याग दिया और अर्जुन ने कृष्ण की मन्त्रणा से भीष्म को आहत कर डाला।

नोटः- पांचाल देश के राजा पृषत, द्रुपद आदि सोमवंशी अर्थात चन्द्रवंशी [2] के पुत्र पुरुरवा के वंशज थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नपुंसक
  2. इला

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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