गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
मोक्ष-संन्यास-योग
अर्थात सर्परूप राजा नहुष ने पूछा किः- संसार में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र यह चार वर्ण हैं जिनके प्रमाण वेद व सत्य हैं; किन्तु जो गुण सत्य, क्षमा, दान, शील-स्वभाव, अहिंसा, तप आदि ब्राह्मण के बताए गए हैं वह गुण यदि शूद्र में हों तो क्या वह शूद्र ब्राह्मण की गणना में आ सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर युधिष्ठिर ने इस प्रकार दिया हैः- युधिष्ठिर उवाच- अर्थात- युधिष्ठिर ने कहा कि- “ब्राह्मण के लक्षण यदि शूद्र में हों और शूद्र के गुण व लक्षण ब्राह्मण में हों तो ब्राह्मण ब्राह्मण नहीं होता किन्तु शूद्र होता है; और ब्राह्मण के गुण व लक्षण वाला शूद्र ब्राह्मण होता है।” इस विवेचन से यह स्पष्ट है कि जिसे भारत में वर्ण-व्यवस्था कहते हैं और जो शास्त्रों द्वारा परिबद्ध कर दी गई है वह व्यवस्था विश्व-व्यापी है यद्यपि भारत के सिवा यह चार वर्ण अन्य देशों में प्रथक-प्रथक नाम से संज्ञित नहीं हैं किन्तु श्लोक 42 से 44 में वर्णित लक्षण व कर्मों के अनुसार यह विभाजन स्वभाविक व विश्व-व्यापी है। यह चतुर्वर्ण व्यवस्था संकुचित या परिसीमित नहीं है जैसा कि उपरोक्त युधिष्ठिर के वाक्य से स्पष्ट है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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