गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 106

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


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राजा द्रुपद, द्रौपदी, धृष्टद्युम्न एवं शिखंडी:-

राजा द्रुपद पांचाल देश के राजा पृषत का पुत्र था। गंगा नदी के उत्तर एवं दक्षिणी वाला भाग पांचाल देश कहलाता था। द्रुपद भरद्वाज ऋषि का शिष्य था, इन्हीं ऋषि के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करता था। भरद्वाज ऋषि का पुत्र द्रोण था। द्रुपद और द्रोण सहपाठी होने के कारण बाल्यावस्था से ही घनिष्ठ मित्र थे।

राजा पृषत की मृत्यु के पश्चात् जब द्रुपद पांचाल देश का राजा हुआ तो राज्याभिमान में उसने अपने सहपाठी मित्र द्रोण का अपमान कर दिया। द्रुपद के अपमान और तिरस्कार से रुष्ट होकर द्रोण हस्तिनापुर चले गए।

हस्तिनापुर में द्रोण का भीष्म ने स्वागत किया और उनको कौरव एवं पांडवों को शिक्षित करने के लिये नियुक्त कर दिया। द्रोण ने कुछ ही समय में धृतराष्ट्र के पुत्रों को तथा पाण्डु के पुत्रों को युद्ध विद्या में दक्ष एवं प्रवीण बनाकर गुरुदक्षिणा में राजा द्रुपद से अपने अपमान का बदला लेने को कहा। पाण्डव अपने गुरु की इच्छा पूरी करने के लिए पांचाल गए और अत्यन्त घोर युद्ध के पश्चात् द्रुपद को परास्त कर मन्त्रियों सहित उसे बाँध कर अपने गुरु के पास ले आए। द्रुपद द्वारा क्षमा याचना करने पर द्रोणाचार्य ने उसके आधा राज्य, गंगा के उत्तरी भाग को अपन पास रख लिया एवं उसके दक्षिणी भाग को द्रुपद को वापस देकर मुक्त कर दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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