गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1057

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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तामस कर्त्ता-

  • श्लोक 28- जिसकी बुद्धि स्थिर नहीं होती अर्थात जो अयुक्त होता है, असभ्य होता है, आलसी, अभिमानी, दीर्घसूत्री[1], नैष्कृतिक[2], आततायी[3] होता है और सदा दुखी व अप्रसन्न रहता है; ऐसा व्यक्ति “तामस-कर्ता” कहलाता है। देखोः-

अध्याय 14 श्लोक 8, 9, 13; अध्याय 16 श्लोक 4, 7, 10 से 15 व 23;

अध्याय 17 श्लोक 13, 19 व 22।  

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विलम्ब से काम करने वाला
  2. दूसरों को हानि पहुँचाने वाला
  3. दूसरों की जीविका का हरण करने वाला

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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