गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 105

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


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नकुल:-

नकुल ने चेदिराज की कन्या “करेणुमति” से विवाह किया, जिससे “निरमिव” नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ।

राजसूय यज्ञ के समय नकुल ने पश्चिम दिशा के मत्तमयूर, पंचनद अर्थात पंजाब को, अपने मामा मद्रदेश के राजा शल्य को तथा समुद्र तटवर्ती म्लेच्छ, पल्हव, बर्बर किरात, यवन, शक आदि जातियों को परास्त कर अपने अधीन किया।

सहदेव:-

सहदेव का विवाह मद्रदेश के राजा शल्य की कन्या “विजया” से हुआ था जिससे “सुहोत्र” नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ।

राजसूय यज्ञ के समय सहदेव ने दक्षिण दिशा के शूरसेन और मत्स्यदेश के राजा को, अपने नाना कुन्तिभोज को तथा नर्मदा नदी के प्रान्त के राजा विन्द-अनुविन्द को हराकर अवन्दि देश को विजय किया। इसके पश्चात् पूर्वकोशल के राजा भीष्मक, हेरम्बक, मारुध, पुलिन्द आदि समस्त राजाओं को परास्त किया और दक्षिण दिशा की ओर जाकर पांडय, किष्किन्धा को वानर जाति को और राजा मयन्द को तथा माहिषमति के राजा नील को परास्त करके द्रविड, आन्ध्र, कालिंग आदि म्लेच्छ, यवन और निषाद जातियों को हराकर समस्त दक्षिण प्रान्त को अपने अधीन बना लिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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