गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
मोक्ष-संन्यास-योग
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हानि या नाश
- ↑ पौरुषानुबन्ध- पौरुष अर्थात अपनी सामर्थ या शक्ति को; अनुबन्ध अर्थात होने वाले परिणाम को। अतः पौरुषाऽनुबन्ध का अर्थ यह होता है कि किसी कर्म को करने में कितनी सामर्थ या शक्ति की आवश्यकता है तथा इसको करने की सामर्थ भी है या नहीं और इसे करने में आगे भविष्य में क्या परिणाम होंगे।
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज