गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1045

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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।। श्लोक 20 से 22 का भावार्थ।।

श्लोक 20 से 22 तक सात्त्विक, राजस और तामस ज्ञान का वर्णन कर तीनों में भेद बताया है।

  • श्लोक 20- वह ज्ञान जिसके द्वारा भिन्न-भिन्न प्राणियों में एक ही अखंड अविनाशी रूप को देखा जाता है वह सात्त्विक ज्ञान होता है। सात्त्विक ज्ञान के लक्षण अध्याय 13 के श्लोक 7 से 11 में वर्णन किए गए हैं।
  • श्लोक 21- वह ज्ञान जिससे समस्त प्राणी भिन्न-भिन्न होना माना जावे तो इस नानात्व भाव समन्वित ज्ञान को राजस ज्ञान कहते हैं। तथा
  • श्लोक 22- जिस ज्ञान द्वारा मनुष्य कार्य-रूप शरीर में ही आसक्त रहता है, वह तामस ज्ञान होता है और यह तामस-ज्ञान युक्ति से हीन, तत्त्व-हीन तथा तुच्छ होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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