गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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।। श्लोक 20 से 22 का भावार्थ।।
श्लोक 20 से 22 तक सात्त्विक, राजस और तामस ज्ञान का वर्णन कर तीनों में भेद बताया है।
- श्लोक 20- वह ज्ञान जिसके द्वारा भिन्न-भिन्न प्राणियों में एक ही अखंड अविनाशी रूप को देखा जाता है वह सात्त्विक ज्ञान होता है। सात्त्विक ज्ञान के लक्षण अध्याय 13 के श्लोक 7 से 11 में वर्णन किए गए हैं।
- श्लोक 21- वह ज्ञान जिससे समस्त प्राणी भिन्न-भिन्न होना माना जावे तो इस नानात्व भाव समन्वित ज्ञान को राजस ज्ञान कहते हैं। तथा
- श्लोक 22- जिस ज्ञान द्वारा मनुष्य कार्य-रूप शरीर में ही आसक्त रहता है, वह तामस ज्ञान होता है और यह तामस-ज्ञान युक्ति से हीन, तत्त्व-हीन तथा तुच्छ होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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