गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 104

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


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4. खांडव वन को जलाते समय “नमुचि राक्षस” के भाई “मय” को न मारकर उससे मित्रता कर ली थी। इस मय दानव ने ही इन्द्रप्रस्थ में पाण्डवों के लिये वह अद्भुत और विचित्र भवन बनाया था जिसमें राजसूय यज्ञ के समय दुर्योधन का उपहास हुआ।

5. किरात वेशधारी शिव ने अर्जुन को “ब्रह्मशिर” पाशुपत अस्त्र दिया और उसका रहस्य एवं निवर्तन बताया।

6. यमराज ने “दण्ड” नामक अस्त्र दिया।

7. वरुण ने “वरुण-पाश” दिया।

8. कुबेर ने “प्रस्वापन” नाम का अन्तर्धान अस्त्र दिया। इसी अस्त्र से शिव जी ने किसी समय में त्रिपुरासुर दैत्य को मारा था।

9. इन्द्र ने अर्जुन को स्वर्ग में बुलाया और उसे अस्त्र-शिक्षा दी। पाँच वर्ष तक इन्द्र के पास रहकर पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर इन्द्र से “वज्रास्त्र और अशनि शस्त्र” प्राप्त किया। स्वर्ग में ही अर्जुन की मित्रता चित्रसेन गन्धर्व से हुई थी।

ये समस्त अस्त्र-शस्त्र अर्जुन ने द्वैपायन व्यास मुनि द्वारा बताई गयी “प्रतिस्मृति” विद्या को सिद्ध करके प्राप्त किया था।

राजसूय यज्ञ के समय अर्जुन ने उत्तर दिशा को विजय करके कलिंग देश, कालकूट, कुलिन्द, शाकल द्वीप और सप्तद्वीपों को अपने अधीन किया। प्राग्ज्योतिष देश के राजा भगदत्त को, किरात, चीन सागर, पंचगण देश, कश्मीर, त्रिगर्त, कोकनद, चोल, बाल्हीक, कम्बोज आदि समस्त उत्तर दिशा के राजाओं को परास्त कर अपने अधीन किया।

मानसरोवर के गन्धर्वों को परास्त करके तित्तिर, कल्माष तथा मण्डूक जाति के घोड़े लिए। उत्तर कुरुदेश को जीता और कर वसूल किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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