गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1033

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
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कर्त्ता-

वेद-शास्त्र में सृष्टि का कर्ता ब्रह्म है और सांख्य शास्त्र में त्रिगुणात्मक प्रकृति है। किन्तु गीता में प्रकृति को स्वतंत्र न मानकर ईश्वरीय माया माना है और समस्त कर्तृत्त्व का कर्ता परम ब्रह्म परमेश्वर को कहा गया है।

प्रथग्विध-करणः-

(क) जिस-जिस इन्द्रिय तथा साधन द्वारा कर्म किया जाता है उसका नाम “करण” है। अतः सृष्टि-रचना का जो कर्म है उसके “कारण” प्रकृति और पुरुष हैं।[1]

ख) त्रिगुण की उत्पत्ति प्रकृति से होती है अतः सत्त्व-रज-तम गुणों का करण प्रकृति है।[2]

(ग) प्रकृति के त्रिगुण कर्म-बन्धन में डालने वाले होते हैं अतः कर्म-बन्धन के करण त्रिगुण हैं।[3]

(घ) सत्त्व-रज-तम-गुणों से शरीर रचना होती है अतः यह तीनों गुण शरीर-रचना के “कारण” होते हैं।[4]

(ङ) कर्म-बन्धन से मुक्ति सत्त्व गुण से मिलती है अतः सतोगुण मुक्ति का करण है;[5]आसुरी-वृत्ति का करण रजोगुण है [6] अज्ञान, आलस्य, निद्रा, प्रमाद, दम्भ आदि का करण तमोगुण होता है;[7]

(च) काम का करण विषयासक्ति [8] है; अविवेक का करण क्रोध; स्मृतिभ्रंश का करण अविवेक; बुद्धिनाश का करण स्मृतिभ्रंश; सर्वनाश का करण बुद्धि नाश को बताया गया है [9]

(छ) अधोगति का करण रज-तम-गुणात्मक आसुरी-वृत्ति को कहा गया है [10]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अध्याय 13 श्लोक 26
  2. अध्याय 14 श्लोक 5
  3. अध्याय 14 श्लोक 5
  4. अध्याय 14 श्लोक 20
  5. अध्याय 14 श्लोक 11 व 14; अध्याय 16 श्लोक 1 से 3 व 5
  6. अध्याय 14 श्लोक 7 व 12
  7. अध्याय 14 श्लोक 8 व 13; व अध्याय 16 श्लोक 4, 7 व 10
  8. अध्याय 2 श्लोक 62
  9. अध्याय 3 श्लोक 63
  10. अध्याय 13 श्लोक 21; अध्याय 14 श्लोक 15 व 18; अध्याय 16 श्लोक 19 से 21

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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