गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
मोक्ष-संन्यास-योग
।। संन्यास तथा त्याग की व्याख्या।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्त्री-पुत्र-धन के लिए तथा रोग-दुःख-व्याधि के निवारण या निवृत्ति के लिए या किसी इच्छा वासना की पूर्ति के लिए जो यज्ञ-दान-तप-उपवास आदि किए जाते हैं उनको “काव्य-कर्म” कहा है। अतः स्वार्थ हित कर्म “कामा-कर्म” होते हैं।
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