गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1006

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-17
श्रद्धात्रय-विभाग-योग
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(22)
अदेश काले यद्दानं
अपात्रेभ्यश्च दीयते ।
असत्कृतमवज्ञातं
तत्तामसमुदाहृतम् ॥

अदेशकाल[1] दिया जो जाता
दिया जाता या अपात्र[2] को।
असत्कृत[3] अवज्ञात[4]जो होता
तामस दान कहलाता वो।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनुचित स्थान व अनुपयुक्त समय में
  2. अयोग्य व्यक्ति;- मद्यपान करने वाला; भक्षाभक्ष का विचार न रखने वाला; तस्कर वृत्ति वाला; अन्यायी, नीच व घ्रणित कर्म करने वाला; प्रत्युयकारी; दान का दुरुपयोग करने वाला; जो स्वयं संपन्न हो; यह समस्त व्यक्ति “अपात्र” कहे गए हैं। ऐसे लोगों को दिया हुआ दान निष्फल होता है
  3. बिना सत्कार के
  4. तिरस्कारपूर्वक

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17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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