गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 10

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


गीतोपदेश के पश्चात् भागवत धर्म की स्थिति
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सृष्टि रचना के विषय में वेदों, उपनिषदों तथा पुराणों में ऐसा वर्णन है कि परमब्रह्म परमेश्वर ने हिरण्गर्भ अर्थात ब्रह्मा को सृष्टि रचना करने की आज्ञा दी जिसका अनुपालन करने के लिये ब्रह्मा से मरीचि, आदि सात मानस पुत्र उत्पन्न हुए, और उन मानस पुत्रों ने सृष्टि-रचना क्रम आरम्भ करने के लिये “प्रवृत्ति-मार्ग” का अवलम्बन लिया। इसके अतिरिक्त ब्रह्मा के ही सनत्कुमार, कपिल आदि सात मानस पुत्र और उत्पन्न हुए, जिन्होंने “निवृत्ति-मार्ग” अर्थात सांख्य-मार्ग की ज्ञाननिष्ठा का अवलम्बन लिया।

गीताऽध्याय 3, श्लोक 3 में यही प्रतिपादित किया गया है, कि इस लोक में केवल दो ही निष्ठाऐं हैं-

  • एक निवृत्ति मार्ग की जो सांख्यों की ज्ञाननिष्ठा है
  • दूसरी प्रवृत्ति मार्ग की, जो कर्मयोग की कर्मनिष्ठा है।

कर्म की जिस प्रधानता को ऋषभदेव ने स्वीकार किया है, उसमें प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों मार्ग निहित हैं। कर्म करने में एक तो कर्म करने की क्रिया का व दूसरा कर्म करने की वासना का इन दो तत्त्वों का समावेश रहता है। इन दो तत्त्वों में से कर्म करना कर्मयोग मार्ग है, और दूसरे तत्त्व वासना का परित्याग करना निवृत्ति-मार्ग है, जिसे ज्ञान-निष्ठा या संन्यास कहते हैं। इस वासना त्याग में ही परिग्रह त्याग, तपस्या द्वारा चित्त शुद्धि, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, इन्द्रिय-निग्रह, ब्रह्मचर्य, व्रत उपवास आदि आ जाते हैं। अतः ऋषभदेव की यह निष्ठा सांख्य मत की शुद्ध द्वैत निष्ठा थी जो भागवत धर्म की केवल एकांकी-निष्ठा है।

ऋषभदेव की इस शुद्ध द्वैत-निष्ठा को मानने वाले जो आचार्य हुए वह अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमितनाथ, सुपद्मनाथ, सुपाश्र्वनाथ, चन्द्रप्रभु, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेपांसनाथ, वसुपद्म, विमलनाथ, अनन्तदास, धर्मनाथ, सन्तनाथ, कुम्भनाथ, अमरनाथ, मल्लिनाथ, मुनि सुव्रतनाथ, नृमिनाथ व नैमीनाथ यह 22 आचार्य हुए।

बनारस के क्षत्रिय राजा अश्वसेन के पुत्र ने जो पार्श्वनाथ के नाम से विख्यात हैं, संन्यास ग्रहण कर लिया, तथा गहन तपस्या करने के पश्चात् उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, और वे ऋषभदेव के द्वैतवाद का ही अनुपालन करने लगे तथा सांख्य के संन्यास मार्ग का ही उपदेश देने लगे। ऋषभदेव के अनुयायियों में पार्श्वनाथ 23 वें आचार्य थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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