गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 94

Prev.png
नौवां अध्याय
मानव-सेवारूपी राजविद्या: समर्पणयोग
46. सारा जीवन हरिमय हो सकता है

22. इसमें शक नहीं कि परमेश्वर के एक नाम मात्र से झट् परिवर्तन हो जाता है। यह मत करो कि राम करने से क्या होता है! जरा कहकर तो देखो! कल्पना करो कि संध्या समय किसान काम करके घर लौट रहा है। रास्ते में उसे कोई यात्री मिल जाता है। वह उससे कहता है- चाल घरा उभा राहे नारायणा। ‘हे पदयात्री नारायण, जरा ठहरो। अब रात हो आयी। भगवन, मेरे घर चलो।’ उस किसान के मुंह से ऐसे शब्द निकलने तो दो, फिर देखो, उस यात्री का रूप बदलता है या नहीं। वह यात्री यदि डाकू और लुटेरा होगा, तो भी पवित्र हो जायेगा। यह फर्क भावना के कारण होता है। भावना में ही सब कुछ भरा है। जीवन भावनामय है। बीस साल का एक पराया लड़का घर आता है, पिता उसे अपनी कन्या देता है। वह लड़का है तो सिर्फ बीस साल का, परंतु पचास साल का श्वशुर उसके पैर छूता है, यह क्या बात है? कन्या अर्पण करने का वह कार्य ही कितना पवित्र है! वह जिसे दी जाती है, वह परमेश्वर ही मालूम होता है। यह जो भावना दामाद के प्रति, वर के प्रति रखी जाती है, उसी को और ऊपर ले जाओ, और आगे बढ़ाओ।

23. कोई कहेगा कि आखिर ऐसी झूठी कल्पना करने से लाभ क्या? मैं कहता हूँ कि पहले से ही सच्चा-झूठा मत कहो। पहले अभ्यास करो, अनुभव लो, तब तुम्हें सच-झूठ मालूम हो जायेगा। उस कन्यादान में कोरी शाब्दिक नहीं, किंतु यह सच्ची भावना करो कि वह जमाई सचमुच ही परमात्मा है, तो फिर देखोगे कि कितना फर्क पड़ जाता है। इस पवित्र भावना के प्रभाव से वस्तु के पूर्वरूप और उत्तर रूप में आकाश-पाताल का अंतर पड़ जायेगा। कुपात्र सुपात्र बन जायेगा। दुष्ट सुष्ट बन जायेगा। वाल्या भील का कायापलट इसी तरह हुआ न? वीणा पर उंगलियां नाच रही हैं, मुख से नारायण नाम का जप चल रहा है और मारने के लिए दौड़ने पर भी शांति डिगती नहीं, बल्कि उसकी और प्रेमपूर्ण दृष्टि से निहारता है- वाल्या ने ऐसा दृश्य ही इससे पहले कभी नहीं देखा था। उसने अभी तक दो ही प्रकार के प्राणी देखे थे- एक तो उसकी कुल्हाड़ी देखकर भाग जाने वाले या उलटकर उस पर हमला करने वाले। परंतु नारद उसे देखकर न तो भागे, न हमला ही किया, बल्कि शांत भाव से खड़े रहे। वाल्या की कुल्हाड़ी रुक गयी। नारद की न भौहें हिलीं, न आंखें झपकीं, मधुर भजन ज्यों-का-त्यों जारी रहा। नारद ने वाल्या से पूछा- "तुम्हारी कुल्हाड़ी क्यों रुक गयी?" वाल्या ने कहा- "आपके शांत भाव को देखकर।" नारद ने वाल्या का रूपांतर कर दिया। वह रूपांतर झूठ था या सच?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः