गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 89

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नौवां अध्याय
मानव-सेवारूपी राजविद्या: समर्पणयोग
43. अधिकार-भेद की झंझट नहीं

11. महाभारत में ये जो स्त्री, शूद्र, वैश्य आदि की कथाएं आती हैं, उनका उद्देश्य यही है कि सबको यह साफ-साफ दीख जाये कि मोक्ष का द्वार सबके लिए खुला है। इन कथाओं का तत्त्व इस नौवें अध्याय में बतलाया गया है। इन कथाओं पर इस अध्याय में मुहर लगायी गयी है। राम का गुलाम होकर रहने में जो मिठास है, वही व्याध के जीवन में है। संत तुकाराम अहिंसक थे, परंतु उन्होंने बड़े चाव से यह वर्णन किया है कि सजन कसाई ने कसाई का काम करके मोक्ष प्राप्त कर लिया। तुकाराम ने एक जगह कहा है- "भगवन, पशुओं का वध करने वालों की क्या गति होगी!" परंतु- सजन कसाया विकूं लागे मांस- ‘सजन कसाई के साथ मांस बेचता है’- यह चरण लिखकर उन्होंने कहा कि भगवान सजन कसाई की मदद करते हैं। नरसी मेहता की हुंडी सकारने वाला, एकनाथ के यहाँ कांवर भरकर लानेवाला, दामाजी के लिए महार[1] बनने वाला, महाराष्ट्र की प्रिय जनाबाई को कूटने-पीसने में मदद करने वाला भगवान सजन कसाई की भी उतने ही प्रेम से मदद करता है, ऐसा तुकाराम कहते हैं। सारांश यह कि अपने कृत्यों का संबंध परमेश्वर से जोड़ना चाहिए। कर्म यदि शुद्ध भावना से पूर्ण और सेवामय हो, तो वह यज्ञरूप ही है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाराष्ट्र की एक हरिजन-जाति।

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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