नौवां अध्याय
मानव-सेवारूपी राजविद्या: समर्पणयोग
43. अधिकार-भेद की झंझट नहीं
11. महाभारत में ये जो स्त्री, शूद्र, वैश्य आदि की कथाएं आती हैं, उनका उद्देश्य यही है कि सबको यह साफ-साफ दीख जाये कि मोक्ष का द्वार सबके लिए खुला है। इन कथाओं का तत्त्व इस नौवें अध्याय में बतलाया गया है। इन कथाओं पर इस अध्याय में मुहर लगायी गयी है। राम का गुलाम होकर रहने में जो मिठास है, वही व्याध के जीवन में है। संत तुकाराम अहिंसक थे, परंतु उन्होंने बड़े चाव से यह वर्णन किया है कि सजन कसाई ने कसाई का काम करके मोक्ष प्राप्त कर लिया। तुकाराम ने एक जगह कहा है- "भगवन, पशुओं का वध करने वालों की क्या गति होगी!" परंतु- सजन कसाया विकूं लागे मांस- ‘सजन कसाई के साथ मांस बेचता है’- यह चरण लिखकर उन्होंने कहा कि भगवान सजन कसाई की मदद करते हैं। नरसी मेहता की हुंडी सकारने वाला, एकनाथ के यहाँ कांवर भरकर लानेवाला, दामाजी के लिए महार[1] बनने वाला, महाराष्ट्र की प्रिय जनाबाई को कूटने-पीसने में मदद करने वाला भगवान सजन कसाई की भी उतने ही प्रेम से मदद करता है, ऐसा तुकाराम कहते हैं। सारांश यह कि अपने कृत्यों का संबंध परमेश्वर से जोड़ना चाहिए। कर्म यदि शुद्ध भावना से पूर्ण और सेवामय हो, तो वह यज्ञरूप ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाराष्ट्र की एक हरिजन-जाति।
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज