गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 51

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छठा अध्याय
चित्तवृत्ति-निरोध
26. चित्त की एकाग्रता


4.ध्यान-योग में तीन बातें मुख्य हैं-

  1. चित्त की एकाग्रता
  2. चित्त की एकाग्रता के लिए उपयुक्त जीवन की परमितता और
  3. साम्यदशा या सम-दृष्टि।

इस सब बातों के बिना सच्ची साधना नहीं हो सकती। चित्त की एकाग्रता का अर्थ है, चित्त की चंचलता पर अंकुश। जीवन की परिमितता का अर्थ है, सब क्रियाओं का नपा-तुला होना। सम-दृष्टि का अर्थ है, विश्व की ओर देखने की उदार दृष्टि। इन तीन बातों से ध्यान-योग बनता है। इस त्रिविध साधना के भी साधन हैं। वे हैं- अभ्यास और वैराग्य। इन पांचों बातों की थोड़ी सी चर्चा हम यहाँ करें।

5. पहले चित्त की एकाग्रता को लीजिए। किसी भी काम में चित्त की एकाग्रता आवश्यक है। व्यावहारिक बातों में भी चित्त की एकाग्रता चाहिए। यह बात नहीं कि व्यवहार में अलग गुणों की जरूरत है और परमार्थ में अलग। व्यवहार को शुद्ध करने का ही अर्थ है, परमार्थ। कैसा भी व्यहार हो, उसकी सफलता और असफलता आपकी एकाग्रता पर अवलंबित है। व्यापार, व्यवहार, शास्त्र-शोधन, राजनीति, कूटनीति- किसी को भी ले लीजिए, इनमें जो कुछ सफलता मिलेगी। वह उन-उन पुरुषों के चित्त की एकाग्रता के अनुसार मिलेगी। नेपोलियन के लिए कहा जाता है कि जहाँ वह युद्ध की व्यवस्था एक बार ठीक-ठाक लगा देता कि फिर समर-भूमि में गणित के सिद्धान्त हल किया करता था। डेरों-तंबुओं पर गोले बरसते, सैनिक मरते, परन्तु नेपोलियन का चित्त अपने गणित में ही मग्न रहता। मैं यही नहीं कहता कि नेपोलियन की एकाग्रता बहुत बड़ी थी। उससे भी ऊंचे दर्जे की एकाग्रता के उदाहरण दिये जा सकेंगे। खलीफा उमर की भी ऐसी ही बात कही जाती है। बीच लड़ाई में जब नमाज का वक्त हो जाता, तो वे वहीं समर-भूमि में चित्त एकाग्र करके घुटने टेककर नमाज पढ़ने लगते और उनका चित्त इतना एकाग्र हो जाता कि उन्हें यह होश भी न रहता कि किसके आदमी कट रहे हैं। पहले के मुसलमानों की इस परमेश्वर-निष्ठा के ही कारण, इस एकाग्रता के ही कारण, इसलाम धर्म फैल पाया।

6. उस दिन मैंने एक कहानी सुनी। एक फकीर था। उसके शरीर में तीर घुस गया। इससे उसे बड़ी वेदना हो रही थी। तीर खींचने की चेष्टा करने जाये, तो हाथ लगाते ही वेदना और बढ़ जाती थी। इससे वह तीर भी नहीं खींचा जा सकता था। आज की तरह क्लोरोफार्म जैसी बेहोश करने की दवा उस समय थी नहीं। बड़ी समस्या खड़ी हो गयी। कुछ लोग उस फकीर को जानते थे। वे आगे आकर बोले- "तीर अभी मत निकालो। यह फकीर नमाज पढ़ने बैठेगा, तब निकाल लेंगे।" शाम की नमाज का वक्त हुआ। फकीर नमाज पढ़ने लगा। पल भर में ही उसका चित्त इतना एकाग्र हो गया कि तीर उसके बदन से निकला लिया गया, तो भी उसे पता नहीं लगा। कैसी जबर्दस्त है यह एकाग्रता!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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