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छठा अध्याय
चित्तवृत्ति-निरोध
26. चित्त की एकाग्रता
4.ध्यान-योग में तीन बातें मुख्य हैं-
- चित्त की एकाग्रता
- चित्त की एकाग्रता के लिए उपयुक्त जीवन की परमितता और
- साम्यदशा या सम-दृष्टि।
इस सब बातों के बिना सच्ची साधना नहीं हो सकती। चित्त की एकाग्रता का अर्थ है, चित्त की चंचलता पर अंकुश। जीवन की परिमितता का अर्थ है, सब क्रियाओं का नपा-तुला होना। सम-दृष्टि का अर्थ है, विश्व की ओर देखने की उदार दृष्टि। इन तीन बातों से ध्यान-योग बनता है। इस त्रिविध साधना के भी साधन हैं। वे हैं- अभ्यास और वैराग्य। इन पांचों बातों की थोड़ी सी चर्चा हम यहाँ करें।
5. पहले चित्त की एकाग्रता को लीजिए। किसी भी काम में चित्त की एकाग्रता आवश्यक है। व्यावहारिक बातों में भी चित्त की एकाग्रता चाहिए। यह बात नहीं कि व्यवहार में अलग गुणों की जरूरत है और परमार्थ में अलग। व्यवहार को शुद्ध करने का ही अर्थ है, परमार्थ। कैसा भी व्यहार हो, उसकी सफलता और असफलता आपकी एकाग्रता पर अवलंबित है। व्यापार, व्यवहार, शास्त्र-शोधन, राजनीति, कूटनीति- किसी को भी ले लीजिए, इनमें जो कुछ सफलता मिलेगी। वह उन-उन पुरुषों के चित्त की एकाग्रता के अनुसार मिलेगी। नेपोलियन के लिए कहा जाता है कि जहाँ वह युद्ध की व्यवस्था एक बार ठीक-ठाक लगा देता कि फिर समर-भूमि में गणित के सिद्धान्त हल किया करता था। डेरों-तंबुओं पर गोले बरसते, सैनिक मरते, परन्तु नेपोलियन का चित्त अपने गणित में ही मग्न रहता। मैं यही नहीं कहता कि नेपोलियन की एकाग्रता बहुत बड़ी थी। उससे भी ऊंचे दर्जे की एकाग्रता के उदाहरण दिये जा सकेंगे। खलीफा उमर की भी ऐसी ही बात कही जाती है। बीच लड़ाई में जब नमाज का वक्त हो जाता, तो वे वहीं समर-भूमि में चित्त एकाग्र करके घुटने टेककर नमाज पढ़ने लगते और उनका चित्त इतना एकाग्र हो जाता कि उन्हें यह होश भी न रहता कि किसके आदमी कट रहे हैं। पहले के मुसलमानों की इस परमेश्वर-निष्ठा के ही कारण, इस एकाग्रता के ही कारण, इसलाम धर्म फैल पाया।
6. उस दिन मैंने एक कहानी सुनी। एक फकीर था। उसके शरीर में तीर घुस गया। इससे उसे बड़ी वेदना हो रही थी। तीर खींचने की चेष्टा करने जाये, तो हाथ लगाते ही वेदना और बढ़ जाती थी। इससे वह तीर भी नहीं खींचा जा सकता था। आज की तरह क्लोरोफार्म जैसी बेहोश करने की दवा उस समय थी नहीं। बड़ी समस्या खड़ी हो गयी। कुछ लोग उस फकीर को जानते थे। वे आगे आकर बोले- "तीर अभी मत निकालो। यह फकीर नमाज पढ़ने बैठेगा, तब निकाल लेंगे।" शाम की नमाज का वक्त हुआ। फकीर नमाज पढ़ने लगा। पल भर में ही उसका चित्त इतना एकाग्र हो गया कि तीर उसके बदन से निकला लिया गया, तो भी उसे पता नहीं लगा। कैसी जबर्दस्त है यह एकाग्रता!
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