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पांचवा अध्याय
दुहरी अकर्मावस्थाः योग और संन्यास
18. अकर्म-दशा का स्वरूप
9. एक बार मुझे एक भले आदमी ने पत्र लिखा- "अमुक संख्या में रामनाम का जप करना है तुम भी इसमें शरीक होओ और बताओ कि रोज कितना जप करोगे।" वह बेचारा अपनी बुद्धि के अनुसार प्रयास कर रहा था। मैं उसका दोष नहीं बता रहा हूँ। परन्तु राम-नाम कोई गिनती की चीज नही है। मां बच्चे की सेवा करती है तो क्या व उसकी रिपोर्ट छपाने जाती है? यदि वह रिपोर्ट डलवाने लगे, तो 'थैंक यू' कहकर उसके ऋण से बरी हो सकेंगे। परन्तु माता रिपोर्ट नहीं लिखती। वह तो कहती है- "मैंने क्या किया? मैंने कुछ नहीं किया। यह क्या मेरे लिए कोई बोझ है?" विकर्म की सहायता से मन लगाकर, हृदय उंड़ेलकर जब मनुष्य कर्म करता है, तब वह कर्म ही नहीं रहता, अकर्म हो जाता है। वहाँ क्लेश, कष्ट, झंझट कुछ नहीं रहता।
10. इस स्थिति का वर्णन नहीं किया जा सकता। एक धुंधली-सी कल्पना करायी जा सकती है। सूर्य उगता है, पर उसके मन में क्या कभी यह भाव आता है कि अब मैं अंधेरा मिटाऊंगा, पंछियों को उड़ने की प्रेरणा दूंगा, लोगों को कर्म करने में प्रवृत्त करूंगा? वह उगता है, खड़ा रहता है। उसका वह अस्तित्व ही विश्व को गति देता है। परन्तु सूर्य को उसका पता नहीं। आप यदि सूर्य से कहेंगे- "हे सूर्यदेव, आपके अनंत उपकार हैं, आपने कितना अंधेरा दूर कर दिया।" तो वह चक्कर में पड़ जायेगा। कहेगा- "जरा-सा अंधेरा लाकर मझे दिखाओ। यदि उसे मैं दूर कर सका, तो कहूँगा कि यह मेरा कर्तृव्य है।" क्या सूर्य के पास अंधेरा ले जाया जा सकेगा? सूर्य के अस्तित्व से अंधकार दूर होता होगा, उसके प्रकाश में काई सद्ग्रन्थ भी पढ़ता होगा, तो कोई असद्ग्रंथ भी पढ़ता होगा; कोई आग लगाता होगा, तो कोई किसी का भला करता होगा। परन्तु इस पाप-पुण्य का जिम्मेदार सूर्य नही है। सूर्य कहता है- "प्रकाश मेरा सहज धर्म है। मेरे पास यदि प्रकाश न होगा, तो फिर होगा क्या? मैं जानता ही नहीं कि मैं प्रकाश दे रहा हूँ। मेरा होना ही प्रकाश है। प्रकाश देने की क्रिया का कष्ट मैं नहीं जानता। मुझे नहीं लगता कि मैं कुछ कर रहा हूँ।"
सूर्य का यह प्रकाश-दान जैसा स्वाभाविक है वैसा ही हाल संतों का है। उनका जीवित रहना ही मानो प्रकाश देना है। आप यदि किसी ज्ञानी पुरुष से कहें कि "आप महात्मा सत्यवादी हैं" तो वह कहेगा- "मैं सत्य पर न चलूं तो और करूं क्या? मैं विशेष क्या करता हूँ?" ज्ञानी पुरुष में असत्यता हो ही नही सकती।
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