गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 250

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 13
(67) शरीरात् प्रवृहेत् - 4

1. व्यासः समासो गीतायाम्
2. आचारशुद्धिर् विचारेण
3. फलवासना प्रेरकशक्तिर् मन्यते
4. तन्निरसनाय देहात्मपृथक्करणम्

(68) अन्यथा संस्कारासंभवः - 5

5. देहपूजा व्यर्था
6. देहनिंदापि व्यरथैव
7. आत्माधारं शिक्षणशास्त्रम्
8. ‘अहं’ सर्वथा निर्मलः
9. साक्षित्वेन संस्कारः संभवेत्

(69) क्लिष्ट-जीवितं च - 4

10. रक्ष्याणां भक्षणम्
11. भैषज्यातिरेकः
12. पिंडपोषणवृत्तिः
13. कृत्रिम-वेषभूषा

(70) महावाक्यमनुचिंतयेत् - 3

14. तत्त्वमसि-सूत्रम
15. तन्निदिध्यासेन देहस्वाम्यम्
16. वस्त्रवत् धारयेत् जह्याच्च

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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