गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 248

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 12
(59) एकाग्रं च समग्रं च - 2

1. इदं तु धर्म्यामृतम्
2. ध्यानादि-दर्शनान्तं विवृतम्

(60) तुल्यं तु - 5

3. इदानीं कः प्रियतर इति पृच्छा
4. मातृ-हृदयं किं वदेत्?
5. तथैव स्थितिरभूत् भगवतः
6. योगि-संन्यासि-सदृशम्
7. सौलभ्येन समाधानम्

(61) सगुणं साधकं देहभृतः - 5

8. मार्गः साधको बाधको दृष्टिसापेक्षः
9. सगुणं सेवामयं सुलभम्
10. निर्गुणं चिंतामयं कठिनम्
11. ज्ञानमक्षमं सूक्ष्म-शोधनाय
12. प्रायेण परोक्षं बौद्धिकं तत्

(62) बाधकं तदप्यमर्यादम् - 4

13. सगुणमपि सदोषममर्यादं चेत्
14. तत्त्वनिष्ठया सुरक्षिता
15. एतदर्थ शरणत्रयी कल्पिता
16. अत्याचारः परिवर्जनीयः

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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