गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 247

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साम्यसूत्र-वृत्तिः


अध्याय 11


(55) कृत्स्नं न कामयेत् - 5

1. किं नाम विश्वरूपम्?
2. अनंतं ब्रह्मांडम्
3. निरवधिः कालश्च
4. सखैतत् द्रष्टुमिच्छति
5. तस्मै दिव्यदृष्टिर् दत्ता

(56) अंशेऽपि समावेशात् - 4

6. बिंदु-सिंधु-न्यायेन
7. मूर्तिपूजा-रहस्यम्
8. उपमारूपकादि-स्वारस्यम्
9. उपमान-विस्तारः

(57) अनुधिकृतत्त्वाच्च - 4

10. दिव्यदृष्टिरपि भीतः
11. कालविस्मरणं तारकम्
12. सामीप्ये नाधिकारः
13. चरण-सेवा पर्याप्ता

(58) मत्कर्मादौ तात्पर्यम् - 3

14. विश्वगीतं गेयम्
15. सव्यसाचि-कार्यम्
16. सर्वसारं सेव्यम्

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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