गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 238

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 6


(25) आरोढुमिच्छेत् - 3

1. अथ विवरणारंभः
2. गीता व्यवहार-शोधनाय
3. उच्चकांक्षायामेव ध्यानादि-प्रयोजनम्

(26) एकाग्रतया - 4

4. एकाग्रता प्राथमिकी
5. रणांगणेऽपि
6. न ज्ञातं शल्यमुध्दृतम
7. वृद्धोऽपि तरुणायते

(27) साभीष्टा शुद्धिपूर्विका - 5

8. अंतश्चक्रं निवर्तयेत्
9. क्षुद्र-विषयेषु ज्ञानशक्तिं न क्षपयेत्
10. शून्यमनेकं च वर्जयेत्
11. जीवनं शोधयेत्
12. परदोषं न पश्येत्

(28) गणितं सहकारि - 3

13. युक्तं जीवेत्
14. आवृत्तचक्षुः
15. नातिमात्रं तु भुंजीत

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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